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😄 मज़ेदार अंदाज़ में पूरी कहानी
शादी को ज़्यादा दिन नहीं हुए थे। एक दिन मेरे ससुराल वाले घर आने वाले थे। मैं सुबह-सुबह तैयारी में लगी ही थी कि पति देव (जिन्हें मैं प्यार से “बजट बाबू” कहती हूँ) बड़े गर्व से जेब से 500 रुपये निकालकर मेरी हथेली पर रखते हैं और बोले –
👉 “ये लो, मार्केट से सामान ले आओ और माँ-पापा के लिए 6 डिश बना देना।”
मैंने रुपये ऐसे घूरकर देखे जैसे उन्होंने मुझे “500 में ताजमहल बनवा दो” कह दिया हो।
मन में सोचा – वाह रे किस्मत! शादी के बाद मुझे बीवी नहीं, ‘मैजिक वाली जादूगरनी’ समझ लिया है। 500 में 6 डिश? अगर मैं ये कर दूँ तो अगला सीज़न मास्टरशेफ इंडिया मुझे ही जीतना चाहिए!
मैं कुछ कहती उससे पहले ही बैठक से ठहाकों की आवाज़ आई। झांककर देखा – मेरे सास-ससुर आराम से सोफ़े पर बैठे बेटे से अपार्टमेंट की बात कर रहे थे।
ससुर ने पूछा –
“तो बेटा, नया फ्लैट कैसा चल रहा है?”
पति जी छाती फुलाकर बोले –
“गुड़गांव वाला फ्लैट मेरे नाम पर है। अब हमारी लाइफ़ सेट है।”
ये सुनकर मेरे कान खड़े हो गए। अरे वाह! पति जी को तो अपार्टमेंट भी मिल गया और मुझे 500 के नोट से झाड़ू लगाने का काम दिया गया है!
मैंने तुरन्त फैसला किया। मार्केट जाने की बजाय अपनी अलमारी खोली और वो फ़ाइल निकाल ली जिसमें मेरे पापा ने शादी से पहले मेरे नाम पर नोएडा की ज़मीन की रजिस्ट्री करवाई थी।
शाम को सब लोग डाइनिंग टेबल पर जमा हुए। सबको उम्मीद थी कि “बेटा-बउआ की बीवी” 6 डिश लेकर आएगी। मैंने मुस्कुराते हुए उनके सामने वो फ़ाइल रख दी और बोली –
👉 “माँ जी-पापा जी, ये ज़मीन मेरे नाम पर है। अब अगर परिवार सच में एक है, तो गुड़गांव वाला फ्लैट पति-पत्नी दोनों के नाम पर होना चाहिए। वरना, सब अपनी-अपनी प्रॉपर्टी एन्जॉय करें।”
पूरा हॉल अचानक सन्नाटे में बदल गया।
सास की चाय का घूँट बीच रास्ते में ही अटक गया ☕
ससुर ने अख़बार ऐसे खोला जैसे उसमें बचाव का कोई ट्यूटोरियल छपा हो 📄
पति जी का चेहरा ऐसा उतर गया जैसे अचानक वाई-फाई बंद हो गया हो 📶
तीन दिन बाद ही पति मुझे लेकर रजिस्ट्री ऑफिस पहुँचे और बोले –
“लो जी, अब फ्लैट भी हमारा और हक भी बराबर।”
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😜 कहानी का दूसरा मोड़ – ऑफिस वाला ड्रामा
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। एक हफ़्ते बाद सास जी ने मुझे फिर ताना मारते हुए कहा –
“बहू, नौकरी-वोकरी छोड़ो। खाना बनाने में ध्यान दो। औरत का असली काम किचन ही है।”
मैंने हँसते हुए कहा –
“सही कहा माँ जी, पर थोड़ा ध्यान रखिएगा। जिस कंपनी में मैं काम करती हूँ, उसी कंपनी के ऑफिस कैफ़ेटेरिया का कॉन्ट्रैक्ट अभी-अभी आपके बेटे ने लिया है।”
माँ जी हैरान होकर बोलीं –
“मतलब?”
मैंने शरारत भरी मुस्कान के साथ जवाब दिया –
“मतलब ये कि अब ऑफिस में आपके बेटे को हर सुबह मेरी बनाई हुई डील और टेंडर पर ही साइन करना पड़ेगा। वरना किचन तो है ही… वहाँ तो मैं 500 में 6 डिश बना ही दूँगी।”
ये सुनकर पति का मुँह खुला का खुला रह गया, सास जी की आँखें गोल हो गईं और ससुर जी ने खाँसकर माहौल सँभालने की कोशिश की।
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✨ एंडिंग
उस दिन के बाद से घर का माहौल बदल गया।
पति जी हर बार रुपये देने से पहले सोचते हैं कि कहीं ये “500 वाली गलती” फिर से न दोहराएँ।
सास जी ने ताने देने से पहले दो बार सोचना शुरू कर दिया है।
और मैं? मैं हर बार आईने में खुद को देखकर मुस्कुराती हूँ और कहती हूँ –
👉 “बीवी हूँ… पर कोई मज़ाक नहीं हूँ।”
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