जिंदगी के रंग
जिंदगी अक्सर हमें ऐसी परिस्थितियों में डाल देती है, जहाँ न तो सीधे लड़ाई से समाधान निकलता है और न ही ज़बरदस्ती से। असली कला तो यही है कि इंसान अपनी बुद्धि, धैर्य और मधुर व्यवहार से असंभव को भी संभव बना ले। यही कला मैंने अपने मौसा जी, मेजर निगम, की समस्या सुलझाते समय इस्तेमाल की।
समस्या की जड़
मेजर निगम सेना से रिटायर हो चुके थे। सीधी-सादी सोच वाले, ईमानदार इंसान थे। उम्र ढल रही थी, पर आत्मसम्मान आज भी वैसा ही था। उनका कानपुर के मोतीझील कॉलोनी में एक बड़ा घर था। वही घर उनकी टेंशन का कारण बना हुआ था।
उस घर में एक औरत पिछले कई सालों से रह रही थी। न तो वह किराया देती थी और न ही घर खाली करने को तैयार थी। मामला सिर्फ किराए का नहीं था, बल्कि अब तो वह औरत खुद को घर की मालकिन की तरह पेश करने लगी थी।
जैसे ही कोई उसे घर खाली करने की बात करता, वह तुरंत अपने भाई को फोन कर देती। उसका भाई लोको वर्कशॉप में काम करता था। वह भाई अकेला नहीं आता था, बल्कि 10-15 साथियों को साथ ले आता। उस भीड़ को देखकर कोई भी उससे पंगा लेना नहीं चाहता था। पुलिस-प्रशासन को बुलाने से भी फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि मामला पेचीदा हो जाता और सालों तक कोर्ट में लटक जाता।
मौसा जी चाहते थे कि घर खाली हो जाए, ताकि वह पड़ोसियों को बेच सकें। खरीदार तैयार थे, पर शर्त यही थी कि मकान कब्ज़ामुक्त होना चाहिए।
समस्या गंभीर थी। मौसा जी ने मुझे बुलाया और कहा—
“बेटा, कुछ भी करके ये घर खाली करवा दो। वरना खरीदार पीछे हट जाएंगे।”
मेरी योजना
मैंने सोचा—सीधे-सीधे लड़ाई करने से कुछ हासिल नहीं होगा। जो लोग ताकत और भीड़ पर भरोसा करते हैं, उन्हें वैसा ही जवाब देना अक्लमंदी नहीं है। उन्हें बुद्धि और मीठे व्यवहार से साधना ही सही रास्ता होगा।
मैंने तय किया कि पहले उनका भरोसा जीतना ज़रूरी है।
एक दिन सुबह-सुबह मैं मिठाई का डिब्बा लेकर मोतीझील कॉलोनी में पहुँच गया। वह औरत घर के बाहर ही खड़ी थी। उसने मुझे देखा तो शक भरी नज़रों से पूछा—
“कितने आदमी लेकर आए हो?”
मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—
“आदमी क्यों? मैं तो अपने भाई-बहन के घर आया हूँ।”
और मिठाई का डिब्बा उसकी तरफ बढ़ा दिया।
वह चौंकी और बोली—
“भाई? तुम मेरे भाई कैसे हुए?”
मैंने सहजता से कहा—
“आपका भाई रेलवे में है और मैं भी रेलवे में काम करता हूँ। तो भाई ही तो हुआ।”
उसने हैरानी से मेरी ओर देखा और फिर अचानक मुस्कुरा दी। बोली—
“अच्छा, तो आप भी भाई हैं। आइए, अंदर आइए।”
बातचीत की शुरुआत
मैं घर के भीतर गया। बातचीत धीरे-धीरे सामान्य ढंग से शुरू हुई। चाय-नाश्ते के बाद मैंने सीधी बात रखी—
“देखिए बहन जी, यह घर आपका नहीं है। आप चाहें तो इसे खरीद सकती हैं। पड़ोसी लोग जो कीमत देंगे, आप उनसे पाँच लाख कम देकर खरीद लीजिए। और अगर यह संभव न हो तो आप मुझसे पचास हज़ार ले लीजिए और घर खाली कर दीजिए।”
वह थोड़ी देर सोचती रही। चेहरे पर उधेड़बुन साफ झलक रही थी।
अचानक बोली—
“आप मेरे नरही वाले घर के पास रहते थे न? आप BSNL में काम करते थे?”
मैं हँसकर बोला—
“हाँ, बिल्कुल।”
“तो फिर आप पर भरोसा किया जा सकता है,” उसने कहा।
मैंने अपना विज़िटिंग कार्ड और घर का पता उसे दिया और कहा—
“आप सोच लीजिए। मेरा इरादा सिर्फ अच्छे से समस्या सुलझाने का है।”
फैसला
करीब एक हफ्ते बाद वह मेरे नरही वाले घर पर आई। दरवाज़े पर आते ही बोली—
“ठीक है, मैं घर खाली कर दूँगी। पर पैसा कैसे मिलेगा और कौन देगा?”
मैंने उसे समझाया—
“बहन जी, जब आपका सामान ट्रक में लद जाएगा और आप मुझे घर की चाबी देंगी, उसी समय मैं तय रकम आपको दे दूँगा।”
उसने गहरी साँस ली और बोली—
“ठीक है, मुझे आप पर भरोसा है।”
मकान खाली करना
निर्धारित दिन पर वह अपने भाई और कुछ रिश्तेदारों के साथ सामान बाँधने लगी। लोग देख रहे थे, किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि वह औरत इतनी आसानी से मकान खाली कर रही है।
सारा सामान ट्रक में चढ़ गया। जैसे ही उसने चाबी मेरे हाथ में सौंपी, मैंने तुरंत तय की गई रकम उसे थमा दी। साथ ही जेब से दो हज़ार रुपये और निकालकर कहा—
“यह छोटे भाई की तरफ से। इसे मिठाई समझिए।”
वह मुस्कुरा दी। उसकी आँखों में नमी थी, जैसे वह भी समझ रही थी कि सम्मान और व्यवहार से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।
सौदा पक्का
अब मकान खाली था। खरीदार पड़ोसी पहले से तैयार थे। उन्होंने बिना देर किए घर खरीद लिया। मौसा जी की बड़ी समस्या हल हो गई। उन्हें भी चैन की साँस मिली और खरीदार को भी।
मैंने सोचा—अगर उसी दिन मैं लड़ाई-झगड़े के अंदाज़ में जाता तो शायद नतीजा उल्टा होता। या तो मुकदमेबाज़ी होती, या झगड़ा और गहराता। पर मिठाई और भाईचारे के नाम पर काम बन गया।
जिंदगी का रंग
उस दिन मैंने गहराई से समझा कि जिंदगी में हर समस्या का हल ताकत से नहीं निकलता। कई बार एक मिठाई का डिब्बा, दो मीठे बोल और इंसानियत भरा व्यवहार भी बड़े-बड़े झगड़े सुलझा देता है।
ज़िंदगी कई रंग दिखाती है। कभी कठोरता की ज़रूरत होती है, तो कभी नरमी की।
कभी दिमाग से काम लेना पड़ता है, तो कभी दिल से।
और जो इंसान दोनों का संतुलन बना ले, वही जिंदगी के असली रंग देख पाता है।
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सीख
1. संवाद सबसे बड़ी ताकत है – जब हम सामने वाले से बात करने का तरीका बदलते हैं तो वह अपने आप पिघल जाता है।
2. सम्मान दीजिए, समाधान मिल जाएगा – चाहे दुश्मन हो या अजनबी, अगर उसे सम्मान दें तो रास्ते खुल जाते हैं।
3. धैर्य रखिए – जल्दबाजी में किया गया निर्णय अक्सर नुकसानदायक होता है। धैर्य रखकर सही मौके पर सही शब्द कहना ही जीत है।
4. जिंदगी के रंग मीठे भी हैं और कड़वे भी – हमें बस यह तय करना है कि हम कौन-सा रंग चुनते हैं।
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इस तरह, एक बड़ी समस्या बिना शोर-शराबे, बिना कोर्ट-कचहरी और बिना पुलिस के हल हो गई।
और मुझे आज भी याद है, जब उस औरत ने जाते-जाते मुस्कुराकर कहा था—
“भाई, आपकी वजह से मुझे भी इज्जत से निकलने का मौका मिला। वरना लोग मुझे आज भी जबरन काबिज़ कहकर देखते।”
उसकी वह मुस्कान मेरे लिए सबसे बड़ी जीत थी।
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