जेबकतरे की इंसानियत
गर्मियों की दुपहरी थी। शहर की भीड़भाड़ वाली सड़क पर एक गरीब आदमी चल रहा था। उसकी जेब में इकलौता 2000 का नोट रखा था। वही उसकी पूरी पूंजी थी, वही उसके लिए भोजन का सहारा था और वही टिकट बनकर उसे घर तक पहुँचा सकता था।
गरीब आदमी मन ही मन सोच रहा था कि जैसे-तैसे यह दिन कट जाए, शाम तक कोई काम मिल जाए या घर जाने का उपाय हो जाए। परंतु किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
भीड़ में अचानक से एक शातिर जेबकतरे ने अपनी सफाई से काम कर दिया और उसकी जेब से वह इकलौता 2000 का नोट निकाल लिया। गरीब को जब एहसास हुआ तो उसके होश उड़ गए।
वह ठिठककर खड़ा हो गया, आँखों में आँसू भर आए। मन ही मन सोचने लगा—
“अब घर कैसे जाऊँगा? भूखा हूँ, जेब में कुछ भी नहीं बचा, किससे मदद माँगूँ?”
वह पास ही सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे बिछी पटरी पर बैठ गया। चेहरा रूआंसा था, होंठ कांप रहे थे और आँखों से आँसू टपकते जा रहे थे। राहगीरों की नज़र उस पर पड़ी, धीरे-धीरे कुछ लोग उसके इर्द-गिर्द जमा हो गए।
कोई कहने लगा—“भाई, ये सब भगवान की मर्जी है।”
कोई बोला—“भाई, हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा।”
तो किसी ने अपनी कहानी सुनाई—“मेरी भी यहाँ जेब कट गई थी, पर बाद में किसी सज्जन पुरुष ने मेरी मदद की थी।”
भीड़ बढ़ती गई और बातें भी। हर कोई अपने-अपने ढंग से उसे समझाने लगा, लेकिन हकीकत यह थी कि कोई भी उसे ठोस मदद नहीं दे रहा था।
इसी बीच अचानक भीड़ से एक आदमी आगे आया। यह वही जेबकतरा था, जिसने उसकी जेब काटी थी। पर अब वह देवदूत की तरह प्रकट हुआ।
उसने मासूमियत भरे स्वर में पूछा—
“भय्या, क्या हुआ? क्यों परेशान हो?”
गरीब आदमी ने रोते-रोते पूरी कहानी सुना दी। कैसे उसकी जेब कटी, कैसे उसका इकलौता 2000 का नोट गायब हो गया, और अब वह घर जाने और खाना खाने तक लायक नहीं बचा।
जेबकतरे ने गहरी साँस ली और कहा—
“क्या जमाना आ गया है! लोग गरीबों को भी नहीं छोड़ते। शहर में क्राइम बहुत बढ़ गया है।”
यह कहकर उसने अपने कुर्ते की जेब से 500 का नोट निकाला और गरीब आदमी के हाथ में पकड़ाते हुए बोला—
“भय्या, मेरे पास यही इकलौता 500 का नोट है। आप इसे रख लीजिए। काम आ जाएगा।”
गरीब आदमी पहले तो मना करने लगा, बोला—
“नहीं भाई, मैं आपका पैसा कैसे ले सकता हूँ?”
पर जेबकतरे ने जबरन उसके हाथ में वह नोट थमा दिया और कहा—
“इसे अपना समझो, कल को मैं भी इसी हालत में हुआ तो शायद कोई मेरी भी मदद कर देगा।”
गरीब आदमी की आँखों से कृतज्ञता के आँसू बह निकले। वह झुककर उस जेबकतरे के चरण छूने लगा और बोला—
“भगवान आपका भला करे। आज आपने मेरी लाज रख ली।”
यह देखकर भीड़ में खड़े लोग भावुक हो उठे। किसी ने कहा—
“देखो, आज भी इंसानियत जिंदा है।”
दूसरे ने कहा—
“सब चोर-लुटेरे नहीं होते, कुछ लोग दूसरों का दर्द समझते हैं।”
लोगों ने जेबकतरे की जमकर तारीफ़ की। कोई उसे ‘देवदूत’ कहने लगा तो कोई ‘भगवान का भेजा हुआ फरिश्ता’।
पर हकीकत यह थी कि वही शातिर जेबकतरा था जिसने कुछ देर पहले गरीब की जेब काटी थी। उसने 2000 में से 500 वापस करके न सिर्फ अपनी जेब गर्म कर ली बल्कि भीड़ के सामने समाजसेवी और दयालु इंसान का तमगा भी पा लिया।
गरीब आदमी 500 रुपये पाकर थोड़ी राहत महसूस करने लगा। उसे लगा कि दुनिया में अच्छे लोग अब भी हैं। उसने उस नोट से सबसे पहले खाना खरीदा और फिर घर जाने का टिकट लिया।
इधर जेबकतरा भीड़ से निकलकर अकेले में मुस्कुरा रहा था। वह सोच रहा था—
“वाह, क्या खेल खेला है! दो हज़ार में से पंद्रह सौ मेरे पास रह गए और लोग मुझे संत समझ बैठे। चोरी भी हो गई, शोहरत भी मिल गई।”
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कहानी का संदेश
यह घटना सिर्फ एक जेबकतरों की चालाकी की कहानी नहीं है, बल्कि हमारे समाज की सोच का आईना है। भीड़ अक्सर सच्चाई को नहीं देखती, बल्कि जो सामने प्रस्तुत किया जाता है, उसी को सच मान लेती है।
गरीब को राहत तो मिली, पर उसने असली गुनहगार को पहचान ही नहीं पाया। लोग भीड़ में खड़े होकर बिना सोचे-समझे तारीफ़ करने लगे।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि दुनिया में ऐसे लोग भी होते हैं जो बुराई करके भी खुद को अच्छा साबित करने का हुनर जानते हैं। वे समाज में ‘देवदूत’ कहलाते हैं जबकि असलियत कुछ और होती है।
सवाल यह भी है कि क्या सचमुच इंसानियत बाकी है या लोग सिर्फ दिखावा कर रहे हैं?
क्या मदद करने वाले सच में मददगार हैं या फिर अपनी छवि चमकाने वाले?
गरीब आदमी के लिए 500 की मदद बड़ी थी, पर उसके पीछे छिपी सच्चाई कहीं ज़्यादा बड़ी थी।
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👉 असली इंसानियत वही है जो बिना स्वार्थ और बिना दिखावे के की जाए।
👉 और समाज को भीड़ की नज़र से नहीं, समझदारी की आँख से देखना चाहिए।
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