डॉक्टर से सेल्समैन तक – एक व्यंग्यात्मक कहानी

 🩺 डॉक्टर से सेल्समैन तक – एक व्यंग्यात्मक कहानी


प्रस्तावना


भारत में डॉक्टर का नाम सुनते ही एक तस्वीर मन में आती है – सफेद कोट, गले में लटकता स्टेथोस्कोप, गंभीर चेहरा और मरीज को भरोसा दिलाने वाला अंदाज़। समाज में डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है। क्योंकि वह इंसान की जान बचाने वाला होता है। लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे प्राइवेट अस्पतालों और कॉर्पोरेट कल्चर का दबदबा बढ़ा, "सेवा" का स्थान "कमाई" ने ले लिया।


आज हालत यह है कि मामूली बुखार या सिरदर्द हो तो भी लंबी-चौड़ी दवाइयाँ, महंगे-महंगे टेस्ट और जांच की लिस्ट मरीज के हाथ में थमा दी जाती है। कई बार मरीज को समझ ही नहीं आता कि बीमारी बड़ी है या डॉक्टर का बिल!


यही पृष्ठभूमि लेकर यह कहानी शुरू होती है एक ऐसे भारतीय डॉक्टर से, जिसने भारत छोड़कर कनाडा में नया जीवन शुरू किया। लेकिन उसकी "स्किल" जहाँ-जहाँ गई, वहाँ-वहाँ कमाल कर दिया।



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भारत में डॉक्टर की ज़िंदगी


यह डॉक्टर दिल्ली के एक नामी प्राइवेट अस्पताल में काम करता था।

सुबह 9 बजे से लेकर रात 9 बजे तक उसकी ड्यूटी रहती थी।


सुबह आते ही लंबी लाइन में खड़े मरीज।


हर किसी की शिकायत – "सर दर्द हो रहा है", "पेट में जलन है", "सांस फूल रही है", "नींद नहीं आती"।


और हर बार डॉक्टर का वही अंदाज़ – "ठीक है, आपको कुछ टेस्ट कराने होंगे।"



मरीज बेचारा सोचता कि शायद बीमारी गंभीर है। डॉक्टर ने कहा है तो टेस्ट जरूरी होंगे।

और फिर शुरू हो जाती टेस्ट की लिस्ट –


पैथोलॉजी


ईसीजी


ईको


एक्स-रे


एमआरआई


सीटी स्कैन


टीएमटी



छोटा-सा सिरदर्द बड़े-बड़े मशीनों और टेस्टों के बीच घुसकर "महंगा" हो जाता।

हकीकत यह थी कि इन टेस्टों पर अस्पताल को मोटा कमीशन मिलता और डॉक्टर को भी इंसेंटिव।


डॉक्टर को यह सब कभी बुरा नहीं लगा। क्योंकि सिस्टम ही ऐसा बन चुका था।



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कनाडा जाने का फैसला


डॉक्टर के मन में हमेशा से विदेश जाने की चाह थी।

भारत में नाम और पैसा तो था, लेकिन मन की शांति नहीं थी।

वह चाहता था कि कुछ नया करे।


इसी बीच उसे मौका मिला कनाडा जाने का।

वहाँ मेडिकल प्रैक्टिस शुरू करना आसान नहीं था क्योंकि डिग्री व लाइसेंस की बाधाएँ थीं।

इसलिए उसने अस्थायी तौर पर एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में नौकरी कर ली – बतौर सेल्समैन।



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नई नौकरी का पहला दिन


सुबह 9 बजे वह अपने नए बॉस के सामने खड़ा था।

बॉस ने कहा –

“क्या तुम्हें सेल्स का कोई अनुभव है?”


डॉक्टर बोला –

“थोड़ा-बहुत है सर… लोगों को समझाकर कुछ भी बेच सकता हूँ।”


बॉस मुस्कुराया।

उसने सोचा – “नया बंदा है, देखना होगा कितना काम करता है।”



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शाम की गिनती – चौंकाने वाला सच


शाम को 6 बजे बॉस ने डॉक्टर को बुलाया।


बॉस: “तो बताओ, आज कितनी सेल की?”

डॉक्टर: “सर, एक।”

बॉस (चौंककर): “क्या! सिर्फ एक? यहाँ हर सेल्समैन रोज़ कम से कम 20–30 सेल करता है। और तुमने केवल एक की?”

डॉक्टर: “जी सर।”

बॉस (गुस्से में): “और कितने की सेल थी?”

डॉक्टर: “93,300 डॉलर।”


बॉस हक्का-बक्का रह गया।

वह सोच भी नहीं सकता था कि एक ही ग्राहक से इतनी बड़ी सेल हो सकती है।



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पूरी कहानी – हुक से लेकर ब्लेज़र तक


डॉक्टर ने शांत भाव से समझाया –


“सर, एक आदमी आया था। उसे सिर्फ एक छोटी-सी फिशिंग हुक चाहिए थी।

मैंने कहा – सर, छोटी मछली बड़े हुक से नहीं फँसती। क्यों न एक मझोला हुक भी ले लीजिए।

फिर मैंने समझाया कि बड़ी मछलियों के लिए बड़ा हुक चाहिए। तो उसने बड़ा हुक भी ले लिया।


अब मैंने कहा – हुक तो ले लिया, पर मछली पकड़ने के लिए रॉड चाहिए।

वह मान गया और रॉड ले ली।


फिर मैंने पूछा – आप मछली कहाँ पकड़ेंगे? उसने कहा – कोस्टल एरिया में।

तो मैंने कहा – इसके लिए नाव चाहिए। और मैं उसे बोट सेक्शन में ले गया।

वहाँ मैंने उसे 20 फीट की डबल इंजन वाली स्कूनर बोट बेच दी।


अब उसने कहा – यह बोट तो मेरी वोल्क्सवैगन में नहीं आएगी।

तो मैं उसे ऑटोमोबाइल सेक्शन में ले गया और एक डीलक्स 4×4 ब्लेज़र बेच दिया।


फिर मैंने पूछा – आप मछली पकड़ते समय कहाँ रुकेंगे? उसने कहा – अभी प्लान नहीं किया।

तो मैंने उसे कैम्पिंग सेक्शन में ले जाकर 6-स्लीपर कैंपर टेंट दिलवा दिया।


और आखिर में उसने कहा – जब इतना सब ले ही लिया है तो 200 डॉलर की ग्रॉसरी और दो केस बियर भी दे दो।”



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बॉस का आश्चर्य


बॉस दो कदम पीछे हट गया।

उसने अविश्वसनीय नज़रों से डॉक्टर को देखा।


“तुम कहना चाहते हो कि वह आदमी सिर्फ एक फिशिंग हुक खरीदने आया था और तुमने उसे 93,300 डॉलर का सामान बेच दिया?”


डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा –

“नहीं सर।

वह तो सिर्फ सिरदर्द की एक टैबलेट लेने आया था।

मैंने उसे समझाया कि मछली पकड़ना सिरदर्द दूर करने का सबसे अच्छा इलाज है।”



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असली खुलासा


अब बॉस हँसी नहीं रोक पाया।

उसने कहा –

“कमाल है! पहले तुम कहाँ काम करते थे?”


डॉक्टर ने कहा –

“भारत में एक प्राइवेट अस्पताल में।”


बॉस ने ताली बजाते हुए कहा –

“अब समझा! तभी तो तुम्हें बेचने की इतनी कला आती है।

मरीज थोड़े-से दर्द की शिकायत लेकर आता है और तुम लोग उसे टेस्टों की पूरी किताब बेच देते हो।”



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व्यंग्य का कटाक्ष


डॉक्टर की इस बात पर सब ठहाका लगाने लगे।

लेकिन अंदर ही अंदर एक गहरी सच्चाई छिपी थी।


भारत में अक्सर यही होता है –


सिरदर्द पर एमआरआई।


घबराहट पर ईसीजी और ईको।


थकान पर सीटी स्कैन।


और मामूली बुखार पर पैथोलॉजी की पूरी जाँच।



मरीज सोचता है कि डॉक्टर उसकी सेहत की चिंता कर रहा है।

लेकिन असल में वहाँ "सेल्स" का खेल चलता है।



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सीख


यह कहानी मज़ाक के तौर पर सुनाई जाती है।

लेकिन इसका व्यंग्य बहुत गहरा है।


👉 संदेश यह है कि हेल्थकेयर सेवा होनी चाहिए, बिज़नेस नहीं।

👉 डॉक्टर अगर ईमानदारी से इलाज करे तो वही सच्चा भगवान है।

👉 लेकिन अगर बीमारी को बहाना बनाकर जेब खाली की जाए तो यह सेवा नहीं, सौदा है।



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निष्कर्ष


इस कहानी से हमें दो बातें सीखने को मिलती हैं –


1. इंसान चा

हे डॉक्टर हो या सेल्समैन, अगर उसे लोगों को समझाने और बेचने की कला आ जाए तो वह कहीं भी सफल हो सकता है।



2. समाज को यह समझना होगा कि स्वास्थ्य सेवा का असली उद्देश्य "इलाज" है, न कि "बिक्री"।


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