किसान और होटल की सीख

 


किसान और होटल की सीख


दोपहर का समय था। पचपन साल का एक आदमी – रामनाथ, जिसकी त्वचा खेतों की धूप और हवाओं से काली पड़ चुकी थी – शहर के सबसे आलीशान होटल की लॉबी में धीरे-धीरे दाखिल हुआ। उसने साधारण कपड़े और घिसी हुई चप्पलें पहनी थीं। उसे देखकर कोई भी पहचान सकता था कि वह गाँव से आया हुआ एक किसान है।


रामनाथ सीधे रिसेप्शन पर पहुँचा और शांति से बोला –

“नमस्ते, मुझे एक रात के लिए कमरा चाहिए।”


रिसेप्शन पर बैठी युवा लड़की सुषमा, जिसने मेकअप किया हुआ था, ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और भौंहें चढ़ा लीं। उसने तिरस्कार भरे स्वर में कहा –

“हमारे यहाँ कमरे बहुत महँगे हैं। आपको कोई साधारण ढाबा या मोटल देख लेना चाहिए।”


रामनाथ अब भी धैर्यपूर्वक मुस्कुराते रहे –

“मुझे पता है, लेकिन मैं यहीं रुकना चाहता हूँ। कोई भी कमरा चलेगा।”


सुषमा झुंझला गई –

“यह होटल सिर्फ बिज़नेस और उच्च वर्ग के लोगों के लिए है। आप कहीं और जाइए।”


पास खड़े मेहमान उसे दया और मज़ाक से देख रहे थे। माहौल असहज हो गया। तभी वहाँ मौजूद बुज़ुर्ग गार्ड हरीश ने सब देखा, पर वह चुप रहा।


रामनाथ ने कुछ क्षण सोचा, फिर अपनी जेब से चमचमाता नया फ़ोन निकाला। नंबर मिलाकर उसने कहा –

“मैं आपके होटल की लॉबी में हूँ। यहाँ का स्टाफ मुझे कमरा देने से मना कर रहा है। कृपया नीचे आ जाइए।”


कुछ ही मिनटों में लिफ्ट से एक युवा व्यक्ति निकला। वह था होटल का निदेशक आदित्य। आते ही उसने रामनाथ के पैर छू लिए और सम्मान से बोला –

“काका! आप बिना बताए क्यों आ गए? मुझे बुलाते, मैं खुद लेने आता।”


लॉबी में सन्नाटा छा गया। सुषमा और बाकी लोग अवाक रह गए। आदित्य ने सख़्ती से कहा –

“ये मेरे उपकारक हैं। अगर इन्होंने मेरे पिता को सही समय पर मदद न दी होती, तो मेरा परिवार और यह होटल कभी खड़ा नहीं हो पाता। आज जो भी हूँ, इनकी बदौलत हूँ।”


रामनाथ ने हल्की मुस्कान दी –

“बेटी, किसी को उसके कपड़ों या हालात से मत आँको। हर इंसान की अपनी कहानी होती है। अमीर-गरीब का अंदाज़ा बाहर से नहीं लगाया जा सकता।”


सुषमा की आँखों में आँसू भर आए। उसे अपनी गलती पर गहरा पछतावा हुआ।


आदित्य ने रामनाथ को होटल के सबसे खास कमरे में ठहराया। उस रात होटल में हर कोई चर्चा करता रहा कि कैसे एक साधारण किसान असल में मालिक के जीवन का सबसे बड़ा सहारा निकला।


अगली सुबह, रामनाथ शांत मन से गाँव लौट गए। उनका चेहरा धीरे-धीरे धूप में ओझल हो गया, लेकिन उनके शब्द सबके दिलों में गहरे उतर गए –

“इंसान की असली पहचान उसके व्यवहार और कर्मों से होती है, उसके रूप या कपड़ों से नहीं।”


उस दिन के बाद से सुषमा ने अपना व्यवहार बदल लिया। उसने हर मेहमान के साथ सम्मान और धैर्य से पेश आना शुरू कर दिया।


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