माँ का अठन्नी सा प्यार
दरवाजे पर खटखट की आवाज़ आई तो सुरेश की पत्नी झुँझला कर बोली – “देखो, तुम्हारी माँ खड़ी है। लगता है बुढ़िया को पैसों की ज़रूरत आन पड़ी है। तभी तो मुँह उठाए चली आई है। पैसे ले जाकर छोटे बेटे का पेट भरना चाहती होगी। मगर ये नहीं जानती कि बड़ा बेटा यहाँ शहर में कितनी मुश्किलों से गुजर रहा है।”
सुरेश चुपचाप उठकर बाहर गया। गेट खोला तो माँ सामने खड़ी थी। वह भागकर माँ के पैर छूने लगा और उसका छोटा सा बैग उठाकर अंदर ले आया।
माँ मुस्कुराकर बोली – “क्या हुआ बेटा? बहुत दुबला-पतला हो गया है। तबियत खराब है क्या? इस बार गाँव भी नहीं आया, डेढ़ साल हो गया तुम लोगों को देखे हुए। इसलिए चली आई।”
सुरेश और उसकी पत्नी चुप रहे। माँ आगे बढ़ी और पोते-पोती को गले लगाकर बातें करने लगी। गाँव से लाई हुई बेर की थैली बच्चों को देने लगी। बच्चे खिलखिलाकर खुश हो उठे।
माँ ने सुरेश और बहू को गौर से देखा और बोली – “क्या हुआ रे? इतना दुबला कैसे हो गया? बहू के भी हाड़ दिखने लगे हैं, चेहरे पर जरा भी माँस नहीं बचा।”
सुरेश ने धीमी आवाज़ में कहा – “कुछ नहीं माँ, बस थोड़ी टेंशन चल रही है। बरसात का मौसम है ना, ठेले का काम नहीं चल रहा।”
उसी वक्त बहू चाय लेकर आई। माँ ने जैसे ही चाय चखी, तुरंत कप रख दिया और बोली – “बहू, ये कैसी चाय है? चिंचड़ों जैसी बांस आ रही है। मुझसे न पी जाएगी।”
बहू गुस्से में कप उठाकर पैर पटकती हुई रसोई में चली गई। सुरेश धीरे से बोला – “माँ, ये डिब्बे का दूध है, हम लोग तो यही पीते हैं। तुम्हें बुरा लग रहा होगा।”
माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा – “इतनी परेशानी झेल रहा है तो गाँव क्यों नहीं आ जाता? कम से कम बच्चों को असली दूध-घी तो मिलेगा।”
सुरेश चुप रहा। माँ को वह यह नहीं बता सकता था कि उसकी पत्नी गाँव में रहना ही नहीं चाहती।
रात माँ शहर में ही रुकी। मगर सुबह होते ही उसने लौटने की तैयारी कर ली। सुरेश का दिल धड़क रहा था कि माँ अब ज़रूर पैसों की मांग करेगी और इस समय तो उसके पास देने को कुछ भी नहीं है। तीन महीने का किराया बकाया, बच्चों की फीस रुकी हुई, पत्नी का इलाज तक नहीं करवा पा रहा था।
माँ ने सुरेश को पास बुलाया। यह सुनकर उसका दिल और तेज़ धड़कने लगा। वह सोचने लगा कि माँ को कैसे मना करेगा। उधर उसकी पत्नी भी रसोई की चौखट पर कान लगाए खड़ी थी, तैयार कि अगर माँ ने पैसे मांगे तो ऐसा जवाब देगी कि आइंदा कभी पैसे माँगने न आए।
माँ ने अपने थैले से एक पोटली निकाली। उसमें से नए-पुराने नोटों की एक गड्डी निकाली और सुरेश की हथेली पर रखते हुए बोली – “ले बेटा, बीस हज़ार हैं। तेरे काम आएंगे। इस बार फसल अच्छी हुई थी।”
सुरेश का गला भर आया। उसके हाथ काँपने लगे। मन कर रहा था माँ की गोद में सिर रखकर फूट-फूटकर रोए और कहे – “माँ, मैं इतना बुरा नहीं हूँ। बस जिम्मेदारियों ने मजबूर बना दिया है।”
माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा – “क्या हुआ? माँ हूँ तेरी। मुझसे क्या छुपाएगा? दो साल से तू घर नहीं आया, तभी से समझ गई थी कि तू परेशानी में है। ले, रख ले। ज्यादा बड़ा हो गया क्या?”
कहते हुए माँ ने नोट उसकी हथेली पर वैसे ही रख दिए जैसे बचपन में अठन्नी रखा करती थी।
यह दृश्य देख बहू की आँखों से भी आँसू छलक पड़े। उसने पल्लू मुँह में दबाकर अपनी रुलाई रोकने की कोशिश की, मगर आँसू बहते ही रहे।
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सुरेश की पत्नी जैसे ही रसोई की चौखट पर खड़ी सुबक रही थी, वैसे ही उसके भीतर ग्लानि का भाव उमड़ रहा था। अभी कुछ देर पहले वही तो कह रही थी कि “बुढ़िया पैसे माँगने आई है।” लेकिन अब समझ आई कि माँ तो सहारा बनकर आई थी।
सुरेश की आँखें भी भर आईं। उसने धीरे से नोटों की गड्डी माँ की हथेली पर वापस करने की कोशिश की, मगर माँ ने प्यार से उसका हाथ पकड़ लिया और बोली – “बेटा, माँ-बाप का सब कुछ संतान के लिए ही होता है।”
उस रात बच्चे दादी की गोद में सुकून से सोए। माँ उनके माथे को बार-बार चूमती रही। सुबह जाते-जाते बहू माँ के पैरों में गिरकर बोली – “माँ, अबकी बार जब गाँव आऊँगी तो अपने हाथ की बनी मिठाई आपको ज़रूर खिलाऊँगी। नाराज़ मत होना।”
माँ मुस्कुराई – “नाराज़गी कैसी बेटी? तू तो मेरे घर की लक्ष्मी है।”
बस तक छोड़ते हुए सुरेश को महसूस हुआ कि उसकी हथेली में अब भी वही बीस हज़ार हैं। मगर पैसों से भी बड़ी दौलत उसे माँ का विश्वास और आशीर्वाद मिला था।
घर लौटते हुए सुरेश ने पत्नी की ओर देखा और कहा – “आज माँ ने मुझे फिर से छोटा बच्चा बना दिया। वही अठन्नी वाला बचपन… जब माँ की गोद में सुरक्षित महसूस करता था।”
पत्नी ने आँसू पोंछते हुए कहा – “हाँ सुरेश, माँ सचमुच अठन्नी सी अनमोल है। माँ का होना ही सबसे बड़ी दौलत है।”
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निष्कर्ष
उस दिन सुरेश ने सीखा कि माँ केवल जन्म देने वाली नहीं होती, बल्कि जीवनभर संतान की ढाल बनकर खड़ी रहती है। वह चाहे अठन्नी दे या बीस हज़ार, उसका मूल्य पैसों में नहीं आँका जा सकता।
माँ का दिया हर आशीर्वाद बेटे-बेटी के जीवन को संवार देता है। और बहू ने भी सीखा कि माँ-बाप का सम्मान करना ही असली समृद्धि है। क्योंकि जिसके घर माँ का आशीर्वाद होता है, वहाँ कभी अभाव ज़्यादा देर तक टिक नहीं सकता।
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